hindisamay head


अ+ अ-

कविता

और छायाएँ

महेश वर्मा


ऊपर यहाँ इस पहाड़ी मोड़ से -
दिखाई देता है एक पोखर।
आज इसके किनारे बैठी है एक स्त्री
धोती हुई अपने कपड़े और अपनी देह।
मेरे भीतर है यह पोखर जिसके शांत जल में
झाँकती वृक्षों की छायाएँ और आकाश,
किनारे बैठी औरत धोती रहती है अपने शोक।
मैं हूँ वह पोखर जो दिखता ऊपर से
मैं ही हूँ वह औरत जो देखती है - जल में हिलती छाया।

मैं ही वह शोक जो धोया जा रहा इस जल में।
यहीं से ऊपर की ओर
देखता हूँ ऊपर से
जहाँ से दिखाई देता एक पोखर, एक स्त्री और छायाएँ


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में महेश वर्मा की रचनाएँ